गधा पुराण: ओम प्रकाश आदित्य की व्यंग्यात्मक कृति
जब भी हिंदी व्यंग्य और हास्य कविता की बात आती है, तो ओम प्रकाश आदित्य जी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। उनकी रचनाएँ समाज की कड़वी सच्चाई को हास्य और व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत करने की अनूठी क्षमता रखती हैं। गधा पुराण उनकी सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक है, जो राजनीति, समाज और व्यवस्था पर करारा प्रहार करती है।
गधा पुराण: एक परिचय
"गधा पुराण" एक व्यंग्यात्मक कविता है, जिसमें गधे को केंद्र में रखकर समाज की विभिन्न विसंगतियों पर कटाक्ष किया गया है। इस कविता में ओम प्रकाश आदित्य जी ने गधे को एक रूपक (metaphor) के रूप में इस्तेमाल किया है, जिससे यह दर्शाया जाता है कि दुनिया में योग्य और मेहनती लोग संघर्ष कर रहे हैं, जबकि चालाक और अवसरवादी लोग सफलता के शिखर पर पहुंच रहे हैं।
गधा, जिसे पारंपरिक रूप से मूर्खता और बोझ उठाने का प्रतीक माना जाता है, इस कविता में शक्ति और प्रभाव का आनंद उठाने वाले चरित्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वहीं, घोड़ा, जो परिश्रम और बुद्धिमत्ता का प्रतीक है, हाशिए पर खड़ा दिखाई देता है।
गधा पुराण की प्रमुख पंक्तियाँ और उनका व्यंग्यात्मक अर्थ
नीचे गधा पुराण की कुछ प्रसिद्ध पंक्तियाँ दी गई हैं, जो इसकी गहरी व्यंग्यात्मकता को दर्शाती हैं:
समाज में गधों का वर्चस्व
इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं
इस पंक्ति में कवि यह संकेत करते हैं कि समाज में हर तरफ़ ऐसे लोग भरे पड़े हैं, जो बिना योग्यता के ऊँचे पदों पर काबिज़ हैं।
गधे हंस रहे, आदमी रो रहा है
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है
यहां कवि वर्तमान सामाजिक स्थिति पर कटाक्ष कर रहे हैं, जहां ईमानदार और मेहनती लोग संघर्ष कर रहे हैं, जबकि अयोग्य लोग सत्ता का मजा ले रहे हैं।
योग्यता की अनदेखी
घोड़ों को मिलती नहीं घास देखो
गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो
इस पंक्ति में एक स्पष्ट विरोधाभास दिखाया गया है कि योग्य और मेहनती व्यक्ति संसाधनों के लिए तरसते हैं, जबकि अयोग्य लोग उच्च सुविधाओं का आनंद ले रहे हैं।
जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है
जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है
जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है
यहाँ कवि ने समाज में मौजूद विभिन्न प्रकार के लोगों का चित्रण किया है—चाहे वे राजनीति में हों, मीडिया में हों, या अन्य क्षेत्रों में।
आखिरी पंक्तियाँ और कड़वा सच
मैं क्या बक गया हूं, ये क्या कह गया हूं
नशे की पिनक में कहां बह गया हूंमुझे माफ करना मैं भटका हुआ था
वो ठर्रा था, भीतर जो अटका हुआ था।।
ये अंतिम पंक्तियाँ व्यंग्य की चरम सीमा को दर्शाती हैं। कवि यहाँ पर व्यंग्यात्मक रूप से कहते हैं कि उन्होंने जो भी समाज की सच्चाई कह दी, उसे नशे की पिनक में कही गई बातें मान लिया जाए। यह समाज की उस मानसिकता को उजागर करता है, जहाँ सच्चाई को स्वीकार करने के बजाय उसे मजाक में टाल दिया जाता है।
गधा पुराण का सामाजिक और राजनीतिक संदेश
"गधा पुराण" सिर्फ़ एक हास्य कविता नहीं है, बल्कि यह एक गहरी सामाजिक और राजनीतिक सच्चाई को उजागर करती है। यह कविता बताती है कि कैसे आज की दुनिया में अयोग्य लोग सत्ता और सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंच रहे हैं, जबकि मेहनती और प्रतिभाशाली लोग पीछे रह जाते हैं।
आज के दौर में भी यह कविता उतनी ही प्रासंगिक है जितनी अपने समय में थी। राजनीति, नौकरशाही, शिक्षा और व्यापार में हम अक्सर देखते हैं कि असली प्रतिभा पीछे छूट जाती है और अवसरवादी लोग आगे निकल जाते हैं।
ओम प्रकाश आदित्य: व्यंग्य के बेताज बादशाह
ओम प्रकाश आदित्य जी हिंदी व्यंग्य और हास्य कविता के क्षेत्र में अद्वितीय थे। उनकी कविताएँ केवल हंसाने के लिए नहीं, बल्कि सोचने पर मजबूर करने के लिए भी जानी जाती हैं। उनकी रचनाएँ भारत की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था की वास्तविकता को बहुत ही सरल लेकिन प्रभावशाली शब्दों में उजागर करती हैं।
उन्होंने अपनी हास्य कविताओं और व्यंग्यात्मक शैली से देशभर में लोकप्रियता हासिल की। गधा पुराण जैसी कविताएँ केवल मनोरंजन नहीं करतीं, बल्कि समाज को एक कड़वा सच भी दिखाती हैं।
निष्कर्ष
"गधा पुराण" न सिर्फ़ एक हास्य कविता है, बल्कि यह एक गंभीर व्यंग्य है, जो समाज की वास्तविकताओं को बेहद रोचक अंदाज में पेश करता है। इस कविता के माध्यम से ओम प्रकाश आदित्य जी ने दिखाया कि कैसे दुनिया में योग्यता और मेहनत को नजरअंदाज किया जा रहा है और अवसरवादियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है।
यह कविता हमें हंसाती भी है और सोचने पर मजबूर भी करती है। अगर आपने इसे अब तक पूरा नहीं पढ़ा है, तो जरूर पढ़ें और इस व्यंग्य के गहरे संदेश को समझें।