हम चाहते ही नहीं मोहब्बत हो जाये – एक अनकही दास्तान
मोहब्बत, एक ऐसा अहसास जो हर दिल को छू जाता है। लेकिन हर इश्क़ का अंजाम खुशी नहीं होता, कभी-कभी यह दर्द और तकलीफ का सबब भी बन जाता है। प्रस्तुत कविता "हम चाहते ही नहीं मोहब्बत हो जाये" इसी दर्द और मोहब्बत से जुड़े कड़वे सच को दर्शाती है। आइए इस कविता को विस्तार से समझें और जानें कि इसमें छिपे गहरे अर्थ क्या हैं।
कविता: हम चाहते ही नहीं मोहब्बत हो जाये
हम चाहते ही नहीं मोहब्बत हो जाये,
करोगी मोहब्बत तो चेहरे पर उदासी छाएगी
जो छाएगी उदासी तो तुझे नींद ना आएगी
नींद न आएगी तो चेहरे पर असर आएगा
चेहरे पर असर आएगा तो तू नजरे चुरायेगा
फिर जाने कब तलक हमसे मिलने ना आयेगा
तू मिलने न आये हमसे ऐसी नोबत ही क्यों आये
हम चाहते ही नही मोहब्बत हो जाये
मोहब्बत का दर्द और उलझनें
कविता का हर शब्द यह दर्शाता है कि मोहब्बत सिर्फ मीठे सपनों की दुनिया नहीं होती, इसमें कई संघर्ष, दर्द और समाज की बंदिशें भी होती हैं। कवि पहले ही कह देता है कि वे मोहब्बत नहीं करना चाहते क्योंकि इसका अंजाम सिर्फ दर्द और तकलीफ है।
करोगी मोहब्बत तो कुछ यूँ मोहब्बत होगी
कभी शक होगा मुझपे कभी शिकायत होगी
जिनसे बास्ता नहीं उनसे अदावत होगी
शहर से नफरत दुनिया से बगावत होगी
हम सह जायेंगे तुम न सह पाओगी
कैसे जमाने के सितम उठाओगी
समझायेंगे घर बाले तो मुझसे खफा हो जाओगी
मैं तन्हा रह जाऊंगा तुम बेबफा हो जाओगी
तुम हो जाओ बेबफा ऐसी नोवत ही क्यों आये
हम चाहते ही नहीं मोहब्बत हो जाये
इस भाग में कवि प्रेम संबंधों में आने वाली मुश्किलों की बात करता है। प्यार सिर्फ दो लोगों के बीच नहीं होता, इसमें समाज, परिवार और रिश्तेदारों की दखलअंदाजी भी होती है। शक और शिकायतें इसे कमजोर कर देती हैं और अंततः इसे खत्म कर देती हैं।
करोगी मोहब्बत तो इज़हार भी करना होगा
ज़माने से छुपकर प्यार भी करना होगा
तुझपर पड़ने लगेंगी दुनिया की नजरें
मुझपर रहने लगेंगी दुनिया की नजरे
फिर देखना तुम ये समझोता कर लोगी
हमें छोड़कर इश्क दूसरा कर लोगी
वो तुम्हे मिल जायेगा तुम खूबसूरत हो
ख्वाहिश हो सबकी हसीन सूरत हो
इश्क़ का इज़हार और छुपाने की मजबूरी इस कविता में दिखती है। समाज की बंदिशें और मोहब्बत को गलत नज़र से देखने वाले लोग इसे और कठिन बना देते हैं। अंततः, कई बार प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे से अलग होने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
करोगी मोहब्बत तो घर भी छोड़ना पड़ेगा
तुम्हारे साथ ये शहर भी छोड़ना होगा
टूट जायेगा फिर घर वालो से रिश्ता
माँ के हाथों के निवालों से रिश्ता
अंजान शहर मैं ये मुकाम भी मर जायेगा
भूख लगेगी तो प्यार भी मर जायेगा
इस हिस्से में कवि यह बताता है कि प्रेम कई बार परिवार से दूर कर देता है। अपनी मोहब्बत निभाने के लिए लोग घर-बार छोड़ देते हैं, लेकिन आगे की ज़िंदगी में कठिनाइयां और अकेलापन उनका इंतजार कर रहा होता है।
निष्कर्ष: मोहब्बत और उसकी हकीकत
"हम चाहते ही नहीं मोहब्बत हो जाये" सिर्फ एक कविता नहीं, बल्कि समाज की सच्चाई को दर्शाने वाला एक आईना है। यह कविता बताती है कि मोहब्बत सिर्फ एक खूबसूरत ख्वाब नहीं, बल्कि जिम्मेदारियों, बलिदानों और समाज की सच्चाइयों से भरी हुई होती है।
क्या प्यार हर दर्द को सह सकता है? क्या मोहब्बत समाज की बंदिशों से ऊपर उठ सकती है? यह सवाल आपके विचारों पर छोड़ते हैं।
आप इस कविता के बारे में क्या सोचते हैं? अपने विचार नीचे कमेंट करें। 😊