संत कबीर के प्रसिद्ध दोहे और उनके अर्थ
संत कबीर दास भारतीय साहित्य और भक्ति आंदोलन के महान कवि और संत हैं। उनके दोहे आज भी जीवन को नई दिशा देने और आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने का स्रोत हैं। सरल भाषा और गहरी सोच से भरे ये दोहे हर वर्ग और धर्म के लोगों को प्रेरित करते हैं। आइए, उनके कुछ सबसे प्रसिद्ध दोहों पर चर्चा करते हैं और उनके अर्थ को समझते हैं।
"बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर |"
कबीर कहते हैं कि ऊँचाई से कुछ हासिल नहीं होता अगर वह दूसरों के लिए उपयोगी न हो। खजूर का पेड़ भले ऊँचा हो, लेकिन वह छाया नहीं देता और उसके फल इतने ऊँचाई पर होते हैं कि उन्हें प्राप्त करना कठिन होता है।
"साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।"
अर्थ: यह दोहा बताता है कि हमें भगवान से केवल अपनी जरूरतों के अनुसार ही माँगना चाहिए। इतना कि हमारा परिवार और हमारे दरवाजे पर आए साधु भूखे न रहें।
"निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।"
अर्थ: कबीर के अनुसार, हमें अपने आलोचकों को अपने पास रखना चाहिए। वे हमें हमारे दोषों को बताकर सुधारने का अवसर देते हैं और हमारा स्वभाव निर्मल बनाते हैं।
"धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।"
अर्थ: इस दोहे में कबीर जीवन में धैर्य रखने की शिक्षा देते हैं। हर कार्य अपने समय पर ही फल देता है, चाहे आप कितनी भी कोशिश करें।
"मस्जिद ढाए, मंदिर ढाए, ढाए जो कछु होय।
एकहि का दिल ना ढाइए, ये तो घर है सोय।"
अर्थ: कबीर कहते हैं कि ईश्वर का निवास स्थान मानव का दिल है। मंदिर और मस्जिद तोड़े जा सकते हैं, लेकिन किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ा पाप है।
"काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब।"
अर्थ: इस दोहे में समय की महत्ता का वर्णन किया गया है। कार्य को कल पर टालना सही नहीं है क्योंकि जीवन का कोई भरोसा नहीं है।
"साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय।"
अर्थ: कबीर कहते हैं कि हमें ऐसा गुरु या मार्गदर्शक चाहिए, जो हमारी अच्छाई को अपनाए और बुराई को दूर कर दे, जैसे सूप अनाज को साफ करता है।
"पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।"
अर्थ: कबीर मानते हैं कि सच्चा ज्ञान केवल प्रेम में है। किताबों का अध्ययन किसी को विद्वान नहीं बनाता। प्रेम ही सच्चे विद्वान की निशानी है।
"जा मरने से जग डरे, मेरे मन आनंद।
मरने ही ते पाइए, पूरा परमानंद।"
अर्थ: कबीर कहते हैं कि मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं है। यह आत्मा की मुक्ति का मार्ग है और परम आनंद को प्राप्त करने का साधन है।
"दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय।"
अर्थ: इस दोहे में संत कबीर भगवान की भक्ति को हर परिस्थिति में बनाए रखने का महत्व बताते हैं। यदि सुख में भी ईश्वर को याद किया जाए, तो जीवन में कभी दुख नहीं होगा।
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